तेजी से रफ्तार पकड़ रहा भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, 2030 तक ₹8 लाख करोड़ का होने की उम्मीद
भारतीय ईएसडीएम उद्योग 20–25% की वार्षिक वृद्धि दर से तेजी से बढ़ रहा है और 2030 तक 7–8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। स्मार्टफोन मांग, सरकारी नीतियां और 1.15 लाख करोड़ के निवेश से उद्योग में तेजी आ रही है।
भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) उद्योग डिजाइन, इंजीनियरिंग और उत्पादन के क्षेत्रों में तेजी से विस्तार कर रहा है। अगले पांच वर्षों में इसके 20 से 25 प्रतिशत की वार्षिक औसत वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ते हुए वर्ष 2030 तक 7 से 8 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंचने का अनुमान है। केयरएज रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2025 तक ईएसडीएम बाजार को स्मार्टफोन की बढ़ती मांग उद्योग के विकास को गति देगी।
ईएसडीएम में लागत सुधार से उद्योग को गति मिल रही
केयरएज रिसर्च की वरिष्ठ निदेशक तन्वी शाह कहती हैं कि वैश्विक निर्माताओं का भारत में अपना आधार स्थापित करना, सरकार का नीतिगत समर्थन, क्षेत्रिय विनिर्माण केंद्र और ईएसडीएम की लागत में सुधार की वजह से इस उद्योग को गति मिल रही है। वे कहती हैं कि ईएसडीएम उद्योग को गति प्रदान करने मुख्य कारण ये होंगे, पहला घरेलू बाजार में स्मार्टफोन की बढ़ती मांग, दूसरा सरकार का नीतिगत समर्थन और तीसरा देश की अगली युवा पीढ़ी, जो भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स नेतृत्व की ओर अग्रसर कर रही है।
स्मार्टफोन की बढ़ती मांग बदलेगी ईएसडीएम उद्योग की तस्वीर
रिपोर्ट के अनुसार स्मार्टफोन सेगमेंट लगभग दो लाख करोड़ रुपये का था और अगले 5 साल में इसके 23 से 25 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ने का अनुमान है। स्मार्टफोन की बदौलत भारत का ईएसडीएम बाजार 2030 तक दोगुना होकर 7 से 8 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह वृद्धि घरेलू बाजार में बढ़ती मांग, सरकारी नीतिगत समर्थन और बढ़ते निर्यात के साथ वैश्विक और स्थानीय निर्माताओं की मजबूत भागीदारी की वजह से होगी। रिपोर्ट का मानना है कि किफायती स्मार्टफोन और कम लागत वाली डेटा योजनाओं ने इंटरनेट की पहुंच को सभी के लिए आसान बना दिया है। महानगरों के साथ ही टियर 2 और 3 शहरों में स्मार्टफोन और उससे जुड़े उपकरणों की अच्छी मांग है।
डिजिटल इंडिया और भारत नेट पहल का दिखा असर
रिपोर्ट के अनुसार स्मार्टफोन और ब्रॉडबैंड की बढ़ती पहुंच, डिजिल इंडिया और भारत नेट जैसी सरकारी पहल के साथ बड़े स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण और एसेंबली सेवाओं की जरूरतें इस उद्योग को और मजबूत कर रही है। भविष्य में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार के बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें टीवी, एसी, रेफ्रिजरेटर और डिशवॉशर जैसे उपकरणों पर हाल में हुई जीएसटी कटौती से बल मिलेगा। इन उपकरणों पर अब 18 प्रतिशत (पहले 28 प्रतिशत से कम ) कर लगता है। इसकी तुलना में छोटे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स पर 12 प्रतिशत कर लगता है। इन कटौतियों से सामर्थ्य में सुधार, बिक्री में वृद्धि और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग और रिटले क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
नीतिगत प्रोत्साहन और टेक इनोवेशन से मिलेगी रफ्तार
रिपोर्ट के अनुसार भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चर्स इकोसिस्टम पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। केयरएज रिसर्च के एसोसिएट डायरेक्टर प्रवीण परदेसी कहते हैं कि इसकी मुख्य वजह सरकार की प्रोत्साहन योजना (पीएलआई, एनपीई, डिजिटल इंडिया), वैश्विक आईएम आउटसोर्सिंग और स्किल वर्कफोस पर जोर देना रहा है। साथ ही एआई और आईओटी की मांग के जरिए प्रौद्योगिकी आधारित विस्तार हुआ है। सरकारी नीतिगत समर्थन और बढ़ते निर्यात के साथ ही वैश्विक और स्थानीय निर्माताओं की मजबूत भागीदारी उद्योग को रफ्तार देगी।
अगली पीढ़ी भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स के नेतृत्व की ओर बढ़ाएगी
रिपोर्ट कहती हैं, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था वाइड डिजिटलीकरण में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है और व्यक्तिगत उपयोगकर्ता डिजिटल अपनाने के मामले में G-20 देशों में 12वें स्थान पर है। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था संपूर्ण अर्थव्यवस्था की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ रही है, जो 2029-30 तक राष्ट्रीय आय में लगभग पांचवां हिस्सा योगदान देगी। युवाओं द्वारा डिजिटल तकनीकों को अपनाने में वृद्धि की वजह से लगातार एडवांस डिवाइज और इलेक्ट्रॉनिक इफ्रास्ट्रक्चर की मांग बढ़ रही है। यह भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।
देश का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग एक बड़े बदलाव के दौर से गुजरा रहा
एआई व इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के जानकार एवं विशेषज्ञ राजीव कौस्तुब कहते हैं कि देश की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग योजना को 1.15 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रस्ताव मिला है। यह इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए शानदार अवसर है। इससे छोटे और मध्यम आकार के उद्योग को लाभ होगा। साथ ही नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। वे कहते हैं कि देश का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग एक बड़े बदलाव के दौर से गुजरा रहा है, जिसने देश को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक अग्रणी वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया है। भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग पिछले पांच वर्ष में 21 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि (सीएजीआर) दर्ज की गई है और यह वित्त वर्ष 2025 में 16.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। इसे सरकारी योजनाओं, मजबूत घरेलू मांग और अनुकूल नीतिगत माहौल का समर्थन मिला है।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के अपनी मजबूत विकास गति को जारी रखेगा और 2030 तक 36 से 40 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। इस विकास की गति को सरकारी कार्यक्रमों द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना और आयात पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करना है। इलेक्ट्रिक वाहन, आईओटी उपकरण, सेमीकंडक्टर और एआई समाधानों जैसी अगली पीढ़ी की तकनीकों की बढ़ती मांग इस उद्योग के विकास को और अधिक गति देगी।
ईएसडीएम योजना को 1.15 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रस्ताव मिला
2 अक्तूबर 2025 को केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी कि सरकार के अधीन इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन को 1.15 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव मिला है। यह योजना देश में इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट के विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया। इस योजना के लिए पीडीएफ आवेदन 30 सितंबर को बंद हो गए और सरकार को इस योजना के तहत 1,15,351 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। सरकार इस योजना के तहत लगभग 59,000 करोड़ रुपये के निवेश प्राप्त करने की परिकल्पना करती है और उसने पूंजीगत उपकरण संग्रह के लिए भी आवेदन खोले हैं। केंद्र ने मार्च 2025 में 22,919 करोड़ रुपये के बजट के साथ छह वर्षों के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग योजना को मंजूरी दी थी।
उद्योग के आंकड़े
रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में भारत का ईएसडीएम बाजार 3.1 लाख करोड़ रुपये का है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक बाजार 16.5 लाख करोड़ रुपये और स्मार्टफोन का बाजार 1.9 लाख करोड़ रुपये का है। वैल्यू शेयर के हिसाब से देखें तो, वित्त वर्ष 2025 में स्मार्टफोन की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत, ऑटोमेटिव की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत, एरोस्पेस की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत, इंडस्ट्रीयल और इंडस्ट्रीयल ऑटोमेशन की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत, रिन्यूएबल की 1 प्रतिशत, मास ट्रांपोटेशन 4 प्रतिशत है।
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