एक मंच पर नजर आए CJI गवई और ओम बिरला, मानवीय गरिमा और त्वरित न्याय पर कही अहम बात
CJI बी. आर. गवई ने 11वें डॉ. एल. एम. सिंघवी स्मृति व्याख्यान में कहा कि मानवीय गरिमा भारतीय संविधान की आत्मा है और सभी मौलिक अधिकारों का आधार है। उन्होंने कैदियों, मजदूरों, महिलाओं और दिव्यांगों से जुड़े फैसलों का उल्लेख किया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने त्वरित और निष्पक्ष न्याय के लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के सहयोग पर जोर दिया।

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई ने बुधवार को कहा कि मानवीय गरिमा भारतीय संविधान की आत्मा है और इसे एक मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। उन्होंने यह बात 11वें डॉ. एल. एम. सिंघवी स्मृति व्याख्यान में कही, जहां लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी मौजूद थे। इस मौके पर CJI ने ‘मानवीय गरिमा: संविधान की आत्मा’ विषय पर अपने विचार रखे, जबकि बिरला ने अपने संबोधन में त्वरित न्याय के लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच सहयोग पर जोर दिया।
संविधान की आत्मा है मानवीय गरिमा: CJI गवई
CJI गवई ने कहा कि मानवीय गरिमा संविधान के मूल सिद्धांतों- स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय को आकार देती है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 20वीं और 21वीं सदी में अपने कई फैसलों में मानवीय गरिमा को न सिर्फ एक अधिकार के रूप में मान्यता दी, बल्कि इसे सभी मौलिक अधिकारों को समझने का आधार भी बनाया। उन्होंने कहा, 'मानवीय गरिमा एक ऐसा सिद्धांत है जो सभी अधिकारों को जोड़ता है। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान हर नागरिक को सम्मान, आजादी और अवसर के साथ जीने का हक दे।' उन्होंने कैदियों, मजदूरों, महिलाओं और दिव्यांगों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र किया।
'कानून सिर्फ जीवित रहने की गारंटी न दे, बल्कि...'
CJI ने कहा कि कोर्ट ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि कानून सिर्फ जीवित रहने की गारंटी न दे, बल्कि आत्मसम्मान और स्वायत्तता के साथ जीने की स्थिति भी बनाए। उन्होंने कहा, 'दिव्यांगों के लिए समाज और सरकार का दायित्व है कि उनकी राह में आने वाली बाधाओं को हटाया जाए, ताकि वे बराबरी और सम्मान के साथ जीवन जी सकें।' CJI ने यह भी कहा कि संवैधानिक व्याख्या में मानवीय गरिमा को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को एक जीवंत दस्तावेज बनाए रखा है, जो समय के साथ बदलती चुनौतियों का जवाब देता है। CJI ने डॉ. भीम राव आंबेडकर की दूरदृष्टि की सराहना की और कहा कि उनके संविधान की वजह से ही वे आज CJI के पद पर हैं।
'त्वरित न्याय के लिए तीनों अंगों का सहयोग जरूरी'
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस मौके पर कहा, 'त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को मिलकर काम करना चाहिए।' उन्होंने जोर देकर कहा कि आज ‘समय पर न्याय’ के माध्यम से मानवीय गरिमा की सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए विभिन्न हितधारकों के बीच सार्वजनिक संवाद की तत्काल आवश्यकता है। बिरला ने कहा कि कानूनी और प्रशासनिक प्रणालियों में अनेक बाधाएं न्याय में देरी का कारण बन रही हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों और विचारकों को सभी के लिए शीघ्र और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार करने की जरूरत है।
डॉ. सिंघवी के योगदान को किया याद
CJI ने इस व्याख्यान के लिए ओ.पी. जिंदल यूनिवर्सिटी और वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी, जो डॉ. एल. एम. सिंघवी के बेटे हैं, का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने डॉ. सिंघवी के योगदान की सराहना की, जिन्होंने भारतीय न्याय और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। इस व्याख्यान में CJI गवई और ओम बिरला ने एक स्वर में मानवीय गरिमा को संविधान का मूल तत्व बताया। जहां CJI ने न्यायपालिका की भूमिका और संवैधानिक व्याख्या में गरिमा के महत्व पर जोर दिया, वहीं बिरला ने त्वरित और निष्पक्ष न्याय के लिए तीनों अंगों के सहयोग को जरूरी बताया। दोनों ने संविधान निर्माताओं, खासकर डॉ. आंबेडकर के विजन की सराहना की।
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